Tumbbad एक सपने को पाने के लिए की गई 15 साल की कड़ी मेहनत का नतीजा है।

Tumbbad, एक ऐसा फिल्म जिसने इंडियन पौराणिक हॉरर को एक नई दिशा दी, ये फिल्म समर्पण, क्रिएटिविटी, और एक सपने को पाने के लिए की गई 15 साल की कड़ी मेहनत का नतीजा है।

Tumbbad – image from youtube

राही अनिल बर्वे द्वारा निर्देशित और सोहम शाह की दमदार परफॉर्मेंस से सजी इस फिल्म को पर्दे तक पहुँचने में 15 साल का समय लगा। लेकिन इस फिल्म की खासियत सिर्फ इसकी कहानी या विजुअल्स में नहीं, बल्कि इसके मेकर्स की जर्नी में है—एक ऐसी जर्नी जो संघर्ष, धैर्य और गहरे इंसाइट्स से भरी हुई थी।

शुरुआत: नागझिरा के जंगलों में बोया गया एक बीज

Tumbbad की कहानी 1993 में शुरू होती है जब राही अनिल बर्वे को उनके एक दोस्त ने नागझिरा की एक कैंपिंग ट्रिप पर एक हॉरर स्टोरी सुनाई। ये कहानी, नारायण धराप के कामों पर आधारित थी, जिसने राही के मन में एक बीज बो दिया। ये सिर्फ कहानी की भयानकता नहीं थी, बल्कि इसे एक विज़ुअल स्पेक्टेकल में बदलने का जो पोटेंशियल था, उसने राही को पूरी तरह से जकड़ लिया।

जो एक वाज-सा आइडिया था, वो धीरे-धीरे 90s के आखिर में एक क्लियर विज़न बन गया, और 1996/97 के आसपास राही ने फिल्म का पहला स्टोरीबोर्ड तैयार किया।

पर इस विज़न को रियलिटी में बदलना आसान नहीं था, भाई!

परंपरा छोड़, फिल्ममेकिंग को अपनाना

राही के इस सपने ने उन्हें कुछ अनकन्वेंशनल डिसीज़ लेने पर मजबूर कर दिया। उन्होंने 10वीं में फेल होने के बाद अपनी फॉर्मल एजुकेशन छोड़ दी और खुद को सपोर्ट करने के लिए कई छोटे-मोटे काम किए। एक बढ़िया सैलरी वाली नौकरी भी मिल गई, लेकिन स्टोरीज सुनाने का उनका पैशन कभी गया नहीं।

2005 में, राही ने अपने हाई-पेइंग जॉब से रिज़ाइन कर दिया और पूरी तरह से फिल्ममेकिंग पर फोकस किया। 2006 में उन्होंने अपने पहले शॉर्ट फिल्म, मंझा, को सिर्फ ₹60,000 के बजट में तैयार किया।

मंझा एक छोटी जीत थी, लेकिन असली सपना तो Tumbbad ही था—एक ऐसा सपना जिसे उन्होंने कभी छोड़ा ही नहीं।

प्रोडक्शन की मुश्किलें: बजट, कास्टिंग, और रिजेक्शन्स

Tumbbad की सबसे बड़ी दिक्कत थी फंडिंग जुटाना। पहले प्रोड्यूसर, श्रेयस, ने ₹3.5 करोड़ जुटाने की कोशिश की, पर ये एक पहाड़ जैसा काम साबित हुआ। प्रोजेक्ट का स्केल हर महीने के साथ बढ़ता गया, और बजट की समस्या और जटिल होती गई।

कास्टिंग भी एक चैलेंज थी। नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी पहले एक्टर थे जिन्हें विनायक के रोल के लिए कास्ट किया गया था। नवाज़, बिना एक रुपया लिए, दो महीने तक रिहर्सल करते रहे। लेकिन शूटिंग शुरू होने से ठीक पहले, सारा प्रोजेक्ट रुक गया। और ये तो बस शुरुआत थी।

राही ने हर दरवाज़े पर मदद के लिए दस्तक दी। उनमें से एक दरवाज़ा अनुराग कश्यप का था। हालांकि उस समय अनुराग के पास खुद भी पैसे नहीं थे, उन्होंने Tumbbad को अपना समर्थन दिया। लेकिन बड़े स्टूडियो फिर भी फिल्म को रिजेक्ट करते रहे। इंडियन प्रोडक्शन हाउस इस फिल्म को बहुत ‘निच’ या ‘एक्सपेरिमेंटल’ मानते थे और इसकी कमर्शियल वायबिलिटी पर शक करते थे।

दूसरी हवा: डैनी बॉयल का कनेक्शन और स्टूडियो सर्च

राही की शॉर्ट फिल्म, मंझा, डैनी बॉयल के हाथ लगी, जिन्होंने इसे अपने Slumdog Millionaire के ब्लू-रे एडिशन में शामिल किया। स्लमडॉग की सफलता ने राही के काम को थोड़ा लाइमलाइट में ला दिया।

राही और अनुराग कश्यप ने इस मौके का फायदा उठाते हुए कई स्टूडियोज़ के सामने Tumbbad का प्रेज़ेंटेशन किया।

FoxStar एक ऐसा स्टूडियो था जिसने प्रोजेक्ट में रुचि दिखाई, लेकिन बजट की दिक्कतों के चलते वो डील भी नहीं हो पाई। Tumbbad को बार-बार डिले किया जाता रहा और राही खुद को एक ऐसे मोड़ पर पाए, जहां उन्हें या तो हार माननी थी या आगे बढ़ते रहना था।

रिजेक्शन्स के बीच धैर्य: “सपने को कभी मत छोड़ो”

रिजेक्शन्स के बावजूद, राही ने कभी अपने विज़न को छोड़ने का विचार भी नहीं किया। 2012 में, उन्होंने सोहम शाह और एक बड़े स्टूडियो के साथ एक क्रिटिकल मीटिंग की।

सोहम, जो पहले विनायक के रोल के लिए कास्ट हो चुके थे, उम्रदराज़ किरदार निभाने को लेकर थोड़े हिचकिचा रहे थे, क्योंकि उन्हें लगा कि इससे उनके करियर में लिमिटेशन आ सकती है। लेकिन इसी मौके ने सोहम को प्रोजेक्ट में गहराई से जुड़ने का रास्ता दिखाया। उन्होंने रोल किया और प्रोड्यूसर भी बन गए।

Tumbbad के संघर्ष सिर्फ कास्टिंग और प्रोडक्शन तक सीमित नहीं थे। सालों तक इस प्रोजेक्ट को चार बार स्टॉल किया गया, और हर बार की नाकामी ने राही और उनकी टीम को निराशा के करीब ला दिया। पर राही का अडिग विश्वास हमेशा कायम रहा। पांच साल और लगे धैर्य, रिजेक्शन, और छोटी-छोटी जीतों के बाद Tumbbad आखिरकार तैयार हुआ।

अंतिम रिलीज़: सफलता और Tumbbad की विरासत

15 साल की कड़ी मेहनत के बाद, Tumbbad 2018 में रिलीज़ हुई और उसे क्रिटिकल अक्लेम मिला। जो लोग इसकी क्षमता पर शक कर रहे थे, उनके मुँह बंद हो गए, और ये फिल्म इंडियन सिनेमा में एक कल्ट क्लासिक बन गई। इस फिल्म ने राही अनिल बर्वे को एक विज़नरी डायरेक्टर के रूप में स्थापित किया और इंडियन पौराणिक हॉरर के नए मानदंड तय किए।

Tumbbad की कहानी में लालच, मिथक और फोकलोर का ताना-बाना इस तरह बुना गया है कि ये अलग-अलग संस्कृतियों के दर्शकों के साथ भी तालमेल बिठाती है, जिससे ये एक टाइमलेस टेल बन जाती है। इसके एटमॉस्फेरिक हॉरर, रिच प्रोडक्शन डिज़ाइन, और ग्राउंडब्रेकिंग सिनेमैटोग्राफी ने इसे सिनेमा प्रेमियों के दिलों में एक खास जगह दी है।

Tumbbad का सबक सिर्फ इसकी कहानी में ही नहीं, बल्कि इसकी मेकिंग में भी है। ये याद दिलाता है कि अपने सपनों को हकीकत में बदलने की राह हमेशा मुश्किलों से भरी होती है, लेकिन धैर्य, जुनून और अडिग विश्वास आपको अंततः सफलता दिला ही देता है।

निष्कर्ष

Tumbbad की मेकिंग सिर्फ एक फिल्म बनाने की कहानी नहीं है, बल्कि ये धैर्य, साहस और अपने आर्टिस्टिक विज़न के प्रति निष्ठा की भी कहानी है। इसके बनने की 15 साल की जर्नी ये बताती है कि अपने सपनों पर विश्वास रखना कितना ज़रूरी है, चाहे कितनी भी बड़ी चुनौतियाँ क्यों न हों।

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