US Election 2024 : अमेरिका में 2024 के Election अब एक क्रिटिकल मोड़ पर पहुंच गए हैं, जहां वोटों की गिनती जारी है। ऐसे में पूरी दुनिया के फाइनेंशियल मार्केट्स में हलचल मच सकती है। Sensex और Nifty जैसे बड़े इंडेक्सेस पर भी निवेशकों की नजर है, जो ये देखने के लिए उत्सुक हैं कि क्या US Election के नतीजे मार्केट ट्रेंड्स को प्रभावित करेंगे।

शुरुआती नतीजे रिपब्लिकन कैंडिडेट डोनाल्ड ट्रंप की डेमोक्रेटिक कैंडिडेट कमला हैरिस पर बढ़त दिखा रहे हैं। अगर हैरिस जीतती हैं, तो बाइडेन प्रशासन की नीतियों का कंटिन्यूशन हो सकता है, लेकिन ट्रंप की जीत से ग्लोबल ट्रेड और इकोनॉमिक पॉलिसीज में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। ये आर्टिकल इन संभावित नतीजों के Sensex और Nifty पर असर की संभावनाओं पर नज़र डालता है।
ग्लोबल मार्केट्स पर ट्रंप या हैरिस की जीत का संभावित असर
ट्रंप का संभावित प्रभाव: टैरिफ पॉलिसीज और कॉर्पोरेट टैक्स रिफॉर्म्स ट्रंप की जीत से ग्लोबल इकोनॉमिक लैंडस्केप में खासकर ट्रेड और टैक्सेशन के मामलों में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। प्रोटेक्शनिस्ट पॉलिसीज के समर्थक होने के नाते, ट्रंप का ध्यान हमेशा यूएस ट्रेड डेफिसिट को कम करने पर रहा है। इस मामले में उनकी एप्रोच इम्पोर्टेड गुड्स पर टैरिफ बढ़ाने की रही है, जिससे US और इंटरनेशनल मार्केट्स दोनों में असर पड़ सकता है।
भारत के लिए ट्रंप की टैरिफ पॉलिसीज का प्रभाव दो तरह का हो सकता है:
इम्पोर्ट्स पर बढ़े हुए टैरिफ: अगर यूएस में इम्पोर्टेड प्रोडक्ट्स पर टैरिफ बढ़ते हैं, तो इसका असर भारतीय एक्सपोर्ट्स पर हो सकता है, खासकर IT सर्विसेज, फार्मास्युटिकल्स, और टेक्सटाइल्स जैसी इंडस्ट्रीज पर। भारतीय प्रोडक्ट्स की लागत बढ़ने से यूएस में उनकी डिमांड घट सकती है, जिसका असर भारतीय कंपनियों पर हो सकता है।
कॉर्पोरेट टैक्स रिफॉर्म्स: पॉजिटिव साइड पर, ट्रंप के कॉर्पोरेट टैक्स कम करने की नीति से यूएस में बिजनेस इंवेस्टमेंट बढ़ सकता है, जिससे यूएस-बेस्ड इंडियन फर्म्स और मल्टिनैशनल कॉर्पोरेशन्स को फायदा मिल सकता है।
हैरिस का संभावित प्रभाव: बाइडेन की इकोनॉमिक पॉलिसीज का कंटिन्यूशन
अगर कमला हैरिस राष्ट्रपति बनती हैं, तो बाइडेन प्रशासन की पॉलिसीज में कंटिन्यूटी देखने को मिल सकती है, जिसमें डिप्लोमेटिक एंगेजमेंट और इंटरनेशनल कोलेबोरेशन को बढ़ावा दिया गया है। इस एप्रोच में मुख्य तौर पर स्ट्रैटेजिक अलायंस बनाए रखने और भारत जैसे पार्टनर्स के साथ कम टैरिफ रखने पर जोर है। भारतीय मार्केट्स के लिए हैरिस की जीत का मतलब हो सकता है:
बिलेटरल ट्रेड एग्रीमेंट्स में स्थिरता: इससे उन भारतीय एक्सपोर्टर्स को राहत मिल सकती है, जो यूएस मार्केट पर निर्भर हैं, और इससे उन इंडस्ट्रीज को ग्रोथ मिल सकती है जो यूएस ट्रेड पर निर्भर हैं।
ग्रीन और टेक सेक्टर्स में इनवेस्टमेंट: बाइडेन-हैरिस प्रशासन का फोकस ग्रीन एनर्जी और टेक्नोलॉजी पर है, जिससे रिन्यूएबल एनर्जी, सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, और IT सर्विसेज में शामिल भारतीय फर्म्स को अवसर मिल सकते हैं।
इमीडिएट रिएक्शन: मार्केट वोलैटिलिटी और इन्वेस्टर सेंटिमेंट
शॉर्ट टर्म में, किसी भी कैंडिडेट की जीत से ग्लोबल स्टॉक मार्केट्स में, जिसमें Sensex और Nifty भी शामिल हैं, वोलैटिलिटी देखी जा सकती है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि ट्रंप की जीत से इन्वेस्टर ऑप्टिमिज्म बढ़ सकता है, जिससे एक इनीशियल रैली आ सकती है। हालांकि, इस रैली की स्थिरता को लेकर अनिश्चितता है, क्योंकि भारतीय कंपनियों की इनकम ग्रोथ और आर्थिक फंडामेंटल्स भी इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
वहीं, हैरिस की जीत से बाजार में एक पॉजिटिव और स्थिर रेस्पॉन्स आ सकता है, खासकर उन निवेशकों के बीच जो यूएस-इंडिया ट्रेड रिलेशंस में स्टेबिलिटी देखना चाहते हैं।
लॉन्ग-टर्म इम्प्लिकेशंस फॉर Sensex और Nifty
इतिहास में US प्रेसीडेंशियल टर्म्स का भारतीय मार्केट्स पर मिला-जुला असर देखा गया है। यूएस प्रशासन की पॉलिसीज ग्लोबल फाइनेंशियल फ्लो और इन्वेस्टर सेंटिमेंट को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन इससे Sensex और Nifty में लॉन्ग-टर्म बदलाव देखे जाने की संभावना नहीं है।
Sensex और Nifty को प्रभावित करने वाले फैक्टर्स जो पॉलिटिकल रीजीम से परे हैं
भारत के इकोनॉमिक रिफॉर्म्स और पॉलिसीज: जैसे PLI स्कीम्स या GST के सरलीकरण से विदेशी निवेश को आकर्षित करने में मदद मिलती है।
ग्लोबल इंटरेस्ट रेट्स और इन्फ्लेशन: फेडरल रिजर्व के इंटरेस्ट रेट एडजस्टमेंट से भारत में विदेशी निवेश में शिफ्ट आ सकता है।
जियोपॉलिटिकल स्टेबिलिटी: डिफेंस और ट्रेड में यूएस-इंडिया रिलेशंस ने पिछले कुछ सालों में काफी ग्रोथ की है। यूएस के राजनीतिक रुख में बदलाव से इनमें स्थिरता या अनिश्चितता आ सकती है।
निष्कर्ष
भावित मार्केट रिएक्शंस के लिए तैयार रहें यूएस चुनावों का नतीजा शॉर्ट-टर्म में वोलैटिलिटी ला सकता है, लेकिन मीडियम टर्म में भारत की मजबूत आर्थिक बुनियाद और ग्रोथ पोटेंशियल इसे एक रेज़िलिएंट मार्केट बनाते हैं। दोनों इंडेक्सेस में इन्वेस्टर सेंटिमेंट के कारण फ्लक्चुएशंस हो सकते हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि समय के साथ ये इंडेक्सेस स्टेबल हो जाते हैं।
इन्वेस्टर्स के लिए एक बैलेंस्ड एप्रोच अपनाना जरूरी है, ताकि यूएस इलेक्शन के परिणामों के बाद मार्केट रिएक्शन को हैंडल कर सकें। ग्लोबल इंटरेस्ट रेट्स, इन्फ्लेशन, और जियोपॉलिटिकल ट्रेंड्स जैसे व्यापक इकोनॉमिक इंडिकेटर्स पर ध्यान रखना इस पोस्ट-इलेक्शन लैंडस्केप में सही निर्णय लेने में मददगार होगा।