आपको पता है BSE के शेयर 8% तक बढ़ गए हैं! हां, सही सुना, 8%। SEBI ने जो नए F&O प्रपोजल्स दिए हैं, उसी की वजह से ऐसा हुआ है। चल, तुझे पूरी स्टोरी बताता हूँ।

इंट्रोडक्शन
बुधवार को BSE के शेयर में एकदम से 8% का उछाल आ गया जब SEBI ने सात नए उपायों का प्रस्ताव रखा जिससे रिटेल स्पेकुलेशन पर अंकुश लगेगा। NSE पर ये स्टॉक Rs 2,607.70 तक पहुँच गया। चल अब देखते हैं इन प्रपोजल्स का BSE पर क्या असर पड़ेगा और IIFL Securities के एक्सपर्ट्स का क्या कहना है।
IIFL Securities का एनालिसिस: EPS और वैल्यूएशन एडजस्टमेंट्स
करेंट वैल्यूएशन
IIFL Securities ने बताया कि BSE फिलहाल FY26 के एक्सपेक्टेड EPS के 26 गुना पर ट्रेड कर रहा है। इसका मतलब मार्केट BSE की फ्यूचर प्रोफिटेबिलिटी और ग्रोथ प्रोस्पेक्ट्स की उम्मीद कर रहा है।
SEBI के प्रपोजल्स का असर
अगर SEBI के प्रपोजल्स लागू होते हैं और अर्निंग्स में 25% की कटौती होती है, तो BSE का स्टॉक FY26 के रिवाइज्ड EPS के 34 गुना पर ट्रेड करेगा। ये बड़ा एडजस्टमेंट दिखाता है कि रेगुलेटरी चेंजेस BSE की फाइनेंशियल परफॉर्मेंस पर कितना असर डाल सकते हैं।
फ्यूचर अर्निंग्स प्रोजेक्शंस
कम्पाउंडेड एनुअल ग्रोथ रेट (CAGR)
रिविजन के बाद, IIFL Securities का अनुमान है कि FY26-28 के दौरान BSE की अर्निंग्स सालाना 15% की दर से ग्रोथ करेगी। ये ग्रोथ रेट दिखाता है कि रेगुलेटरी हेडविंड्स के बावजूद अर्निंग्स रिकवरी और ग्रोथ की अच्छी संभावना है।
30 गुना FY26 रिवाइज्ड EPS पर बॉटम आउट
IIFL Securities का कहना है कि BSE का स्टॉक FY26 के रिवाइज्ड EPS Rs 70 के 30 गुना पर बॉटम आउट होना चाहिए। ये प्रोजेक्शन बेस एस्टिमेट्स को बनाए रखते हुए फाइनल रेगुलेशंस की और क्लैरिटी का इंतजार कर रहा है।
NSE और BSE पर कंपेरेटिव इम्पैक्ट
रेवेन्यू डिपेंडेंस
BSE और NSE के बीच अर्निंग्स इम्पैक्ट काफी अलग है क्योंकि उनकी रेवेन्यू डिपेंडेंस अलग-अलग है। NSE, जो अपने FY25 रेवेन्यू का 60% ऑप्शंस ट्रेडिंग से कमाता है, SEBI के प्रपोजल्स से ज्यादा प्रभावित होगा, जबकि BSE, जो अपने रेवेन्यू का 40% ऑप्शंस ट्रेडिंग से कमाता है, थोड़ा कम प्रभावित होगा।
एस्टिमेटेड अर्निंग्स इम्पैक्ट
IIFL Securities का अनुमान है कि BSE के FY26 अर्निंग्स पर 15-18% का असर पड़ेगा, जबकि NSE के अर्निंग्स पर 25-30% का असर पड़ेगा। ये अंतर दिखाता है कि SEBI के प्रपोजल्स से BSE की तुलना में NSE ज्यादा वल्नरेबल है।
ब्रोकर्स पर असर
डिस्काउंट ब्रोकर्स vs. ट्रेडिशनल ब्रोकर्स
ब्रोकरेज वैल्यू चेन में, डिस्काउंट ब्रोकर्स को ट्रेडिशनल फुल-सर्विस ब्रोकर्स की तुलना में ज्यादा चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। डिस्काउंट ब्रोकर्स, जो रिटेल इन्वेस्टर्स पर ज्यादा निर्भर हैं, प्रपोज्ड मेजर्स से ज्यादा प्रभावित हो सकते हैं।
एडिशनल रेगुलेटरी इम्पैक्ट्स
मार्जिन मनी पर इंटरेस्ट इनकम
मार्जिन मनी पर इंटरेस्ट इनकम की वापसी के बारे में एक अलग कंसल्टेशन पेपर BSE (10%) पर NSE (4%) की तुलना में ज्यादा असर डालेगा। ये आगे BSE के लिए निकट भविष्य में रेगुलेटरी चुनौतियों को जोड़ता है।
कन्क्लूजन
SEBI के प्रपोज्ड रेगुलेटरी मेजर्स ने BSE के अर्निंग्स और वैल्यूएशन पर बड़ा असर डाला है। जबकि BSE को FY26-28 के दौरान 15% एनुअल अर्निंग्स ग्रोथ के साथ इन चुनौतियों का सामना करने की उम्मीद है, मार्केट और ब्रोकरेज लैंडस्केप पर इसके व्यापक प्रभाव को नजदीक से मॉनिटर करना जरूरी है। इन्वेस्टर्स और स्टेकहोल्डर्स को फाइनल रेगुलेशंस पर अधिक क्लैरिटी आने तक अपडेटेड रहना चाहिए।
कैसा लगा? कुछ मजेदार और कुछ सीरियस दोनों ही है न!