Manyam जिले में आदिवासी छात्रों के लिए हायर एजुकेशन एक बड़ी चैलेंज बन गई है। ये छात्र 10वीं की परीक्षा में तो टॉप स्कोर करते हैं, पर गुरुकुल रेजिडेंशियल जूनियर कॉलेजों में सीट पाना उनके लिए बहुत मुश्किल होता है। असल में, सीटों की कमी ही सबसे बड़ी दिक्कत है, जिसकी वजह से इन स्टूडेंट्स का आगे पढ़ना मुश्किल हो जाता है।

अच्छे नंबर, कम मौके
इस साल ही परवतिपुरम और सीतांमपेट ITDA (Integrated Tribal Development Agencies) के अंतर्गत 3,000 से ज्यादा आदिवासी छात्र 10वीं में शानदार परफॉर्म किए। इनमें से कईयों ने तो 550 से ज्यादा मार्क्स भी लाए। ये उनकी मेहनत और टैलेंट को दिखाता है। पर Manyam जिले में इतने सारे स्टूडेंट्स के लिए अच्छे एजुकेशन का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं है।
गुरुकुल रेजिडेंशियल जूनियर कॉलेजों में सीटों की कमी
अभी Manyam जिले में केवल आठ ही गुरुकुल रेजिडेंशियल जूनियर कॉलेज हैं, जिनमें कुल 2,060 स्टूडेंट्स की ही जगह है। डिमांड तो बहुत ज्यादा है, पर इस साल सिर्फ 1,030 स्टूडेंट्स को ही सीटें मिल पाई हैं। ये सीटें ऐसे बंटी हैं:
- MPC और BPC डिपार्टमेंट्स: हर एक में 40 सीटें, कुल मिलाकर 640 स्टूडेंट्स।
- CEC ग्रुप: सीटों की कमी की वजह से कई स्टूडेंट्स को अपनी पसंद के कोर्स ना मिलने पर मजबूरन CEC ग्रुप लेना पड़ता है।
दूरियाँ और रहने की परेशानी
सीटों की कमी के अलावा, एडमिशन प्रोसेस में भी दिक्कत है। सीतांमपेता के छात्रों को दूर-दूर के कॉलेजों में सीटें मिल जाती हैं, जिससे उन्हें काफी दूर रहकर पढ़ाई करनी पड़ती है। जरा इन कॉलेजों को देख:
- पेड्डामडी जूनियर कॉलेज: 40 सीटें
- भद्रगिरी कॉलेज: 40 सीटें
- पी कोनावलसा कॉलेज: 40 सीटें
ये सब दूरियाँ आदिवासी छात्रों के लिए और मुश्किलें खड़ी कर देती हैं।
क्या हो सकता है (hall – solution)?
अच्छी बात ये है कि कई लोग इस समस्या को सुधारने की कोशिश कर रहे हैं। आइए देखें कुछ एक्सपर्ट्स और अफसरों की राय:
- इंफ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाना: रिटायर्ड प्रिंसिपल श्री नागभूषणम का कहना है कि सिर्फ मौजूदा गुरुकुलों में सीटें बढ़ाने से काफी नहीं होगा। ज्यादा छात्रों के लिए नए गुरुकुल बनाने की जरूरत है।
- ट्रांसपोर्टेशन में मदद: दूर के कॉलेजों में जाने वाले छात्रों के लिए र reliable ट्रांसपोर्टेशन की सुविधा होनी चाहिए। साथ ही, दूर इलाकों से आने वाले छात्रों के लिए ट्रैवल कॉस्ट पर सब्सिडी भी दी जा सकती है।
- पढ़ाई में मदद: आदिवासी छात्रों को उनकी पढ़ाई में सपोर्ट देने के लिए स्पेशल प्रोग्राम्स चलाए जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, एकेडमिक काउंसलिंग, स्कॉलरशिप्स और हेल्थ सर्विस जैसी चीजें काफी फायदेमंद हो सकती हैं।
ठीक है, चलते हैं आगे
हर किसी को आगे बढ़ने का मौका
ये सारी दिक्कतें मिलकर Manyam जिले में आदिवासी छात्रों के हायर एजुकेशन में बहुत बड़ी रुकावट बन जाती हैं। इसे ठीक करने के लिए कई चीजें साथ मिलकर करनी होंगी। जैसे:
- ज्यादा सीटें, ज्यादा कॉलेज: मौजूदा गुरुकुलों में सीटों की संख्या बढ़ाई जा सकती है और साथ ही नए गुरुकुल भी बनाए जा सकते हैं। इससे ज्यादा से ज्यादा छात्रों को एडमिशन मिल सकेगा।
- पहुँच आसान बनाओ: नए कॉलेजों को ऐसी जगहों पर बनाना चाहिए जहां आदिवासी छात्रों के लिए आना-जाना आसान हो। इसके लिए सरकार और प्राइवेट सेक्टर मिलकर पैसा लगा सकते हैं। साथ ही, गांव के लोगों की मदद से ऐसी जगहों को चुनना अच्छा रहेगा।
- सपोर्ट सिस्टम बनाना: आदिवासी छात्रों को उनकी पढ़ाई में हर तरह से मदद मिलनी चाहिए। इसमें उनकी पढ़ाई से जुड़ी सलाह (काउंसलिंग), स्कॉलरशिप्स और उनकी हेल्थ का ख्याल रखने वाली सर्विसेज शामिल हो सकती हैं।
अगर हम ये सब चीजें कर पाए, तो Manyam जिले के हर आदिवासी छात्र को आगे बढ़ने का मौका मिल सकेगा।
ये तो हुई Manyam जिले की कहानी, पर आदिवासी छात्रों के हायर एजुकेशन की चुनौतियां और भी जगहों पर होंगी। तुम क्या सोचते हो?